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मौलिक अधिकार(Fundamental Rights) Important For All Competitive Exams

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Fundamental Rights
मौलिक अधिकार

नेहरू रिपोर्ट (1928) द्वारा मूल अधिकारों को भारत के संविधान में सम्मिलित करने की आकांक्षा प्रकट की गई थी।

भारतीय संविधान में भाग 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 12 से 35 में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को राज्य के कृत्यों के विरुद्ध एक गारंटी के रूप में स्थान दिया गया है। आपातकालीन स्थिति में ही अनुच्छेद 358 एवं 359 के प्रावधानों के अंतर्गत ही मूल अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों को न्याय योग्य (वाद योग्य) के रूप में संविधान में रखा गया है।  मौलिक अधिकारों की तुलना अमेरिका के 'अधिकार बिल' से की जाती है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के संरक्षण का दायित्व न्यायपालिका के पास है। मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन वर्तमान में कुल 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं-

1. समानता का अधिकार (अनु. 14 - 18 )
2. स्वतंत्रता का अधिकार ( अनु. 19 - 22 )
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( अनु. 23 - 24 )
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( अनु. 25 - 28 )
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनु. 29 - 30)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनु. 32 )


अनुच्छेद 12- राज्य की परिभाषा। इसके अधीन केंद्र सरकार और संसद, राज्य सरकार और राज्य विधान मंडल, स्थानीय निकाय जैसे पंचायत और नगरपालिका और वैधानिक प्राधिकरण जैसे भेल, एलआईसी आदि आते हैं।

अनुच्छेद 13- यदि कोई कानून/ नियम परंपरा, आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तो वह कानून/ नियम मान्य नहीं होगा।

1. समता या समानता का अधिकार

अनुच्छेद 14- विधि के समक्ष समानता: यह समानता की गारंटी देता है। इसके साथ ही भारत की सीमाओं के अंदर सभी व्यक्तियों ( विदेशी भी ) को कानून का समान संरक्षण प्रदान करता है। ( केवल शत्रु देश के नागरिक को छोड़कर)

अनुच्छेद 15- धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध: राज्य के द्वारा धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता: राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति सेेे संबंधित विषयों में सभी नागरिकों केेेेे लिए अवसर की समानता होगी। परंतु राज्य पिछड़े़े वर्ग के लिए नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है। जिनका राज्य में समान प्रतिनिधित्व नहीं है।

अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का अंत - यह अधिकार निजी व्यक्ति और राज्य को दायित्व देता है कि वह इस अधिकार के हनन को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए। (अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955)

अनुच्छेद 18- उपाधियों का अंत- सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।
भारत सरकार द्वारा भारत रत्न, पदम विभूषण, पदम भूषण, पदम श्री एवं सेना द्वारा परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र आदि पुरस्कार अनुच्छेद -18 के तहत ही दिए जाते हैं।

2. स्वतंत्रता का अधिकार- मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44 वें संविधान संशोधन (1978) केे द्वारा संपत्ति का अधिकार अनुच्छेद 31 एवं 19 (1)(f) को मौलिक अधिकार की सूची सेे हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300(a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।

अनुच्छेद 19‌(1)(a)- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- इसके अंतर्गत सूचना का अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता, प्रदर्शन एवं विरोध का अधिकार निहित है।

19 (b) - शांतिपूर्वक बिना हथियारों के सभा करने की स्वतंत्रता।
19 (c) - संघ बनाने की स्वतंत्रता।
19 ( d ) - देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता।
19 ( e ) - देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता।
19 ( g ) - कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता।

अनुच्छेद 20- अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण : इसकेेे तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन हैं-
1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।
2. अपराध करने के समय जो कानून हैं उसी के तहत सजा मिलेगी ना कि पहले और बाद में बनाने वाले कानून के तहत।
3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 21- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण : किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद- 21(क)- राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा राज्य विधि द्वारा आधारित करें, निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्धध कराएगा। (86 वा संविधान संशोधन- 2002)

अनुच्छेद- 22 - गिरफ्तारी के संबंध में संरक्षण : अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है-
1. हिरासत में लेने का कारण बताना होगा। 2. 24 घंटे के अंदर ( आने जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा। 3. उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार : अनुच्छेद - 23 के अनुसार मानव के दुर्व्यवहार और बलातश्रम का निषेध है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति के क्रय- विक्रय बेगार या बलात श्रम को प्रतिषेध किया गया है।
अनुच्छेद- 23(2) के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर राज्य अपने नागरिकों पर अनिवार्य सेवा आरोपित कर सकता है।

अनुच्छेद- 23 के प्रवर्तन के लिए बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1976 बनाया गया।

अनुच्छेद- 24  यह 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को जोखिम भरे कामों में लगाने से रोकता है।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 25 के अनुसार लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य और सदाचार के अधीन प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की और किसी भी धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की अबाध स्वतंत्रता प्रदान करता है।

अनुच्छेद- 26 के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक मामलों में प्रबंध की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

अनुच्छेद- 27 व्यक्तियों को ऐसेे करो (Tax) देने से मुक्त करता है जो धार्मिक संस्थाओं के पोषण या धर्म की अभिवृद्धि पर किए गए व्यय से संबंधित हो।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 28 के अनुसार राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से वित्त पोषित शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा का निषेध है। धार्मिक प्रार्थना से उसकी सहमति यदि आवश्यक है तो संरक्षक की सहमति से ही उसकी भागीदारी हो सकती है।

5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार : भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 29(1) के अनुसार भारतीय नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार प्राप्त है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 29(2) के अनुसार राज्य द्वारा पोषित किसी शिक्षण संस्था में किसी भी नागरिक को धर्म, भाषा, मूल वंश, जाति या इनमें से किसी आधार पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 30 अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उसके प्रशासन का अधिकार देता है।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 32 में मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए संवैधानिक उपचारों का प्रावधान किया गया है।

उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को मूल अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित आदेश या रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)- व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए सबसे महत्वपूर्ण लेख है। इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित समय में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करें। जिससे न्यायालय बंदी बनाए गए कारणों की जांच कर सके।

परमादेश रिट (Mandamus)- उस समय जारी की जाती है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का उचित निर्वाहन नहीं करता। इस प्रकार के आज्ञा पत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।

प्रतिषेध (Prohibition)- यह आज्ञापत्र सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्द्धन्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही स्थगित कर दें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।

उत्प्रेषण (Certiorari)- यह आज्ञा पत्र अधिकांशत किसी विवाद को निम्न न्यायालयों से उच्च न्यायालय में भेजने के लिए जारी किया जाता है। जिससे वह अपनी शक्ति या अधिकारों का दुरुपयोग न करें। इस आज्ञा पत्र के आधार पर न्यायालय निम्न न्यायाधीशों से विवादों के बारे में सूचना मांग सकते हैं।

अधिकार- पृच्छा (Quo Warranto)- जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिस रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक अधिकार नहीं है तो न्यायालय अधिकार पृच्छा के आदेश द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस आधार पर इस पद पर कार्य कर रहा है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 33 के अनुसार संसद को सुरक्षाबलों, दूरसंचार एवं गुप्तचर सेवा के सदस्यों के मूल अधिकारों को अनुशासन एवं उनके कर्तव्य के उचित निर्वहन के लिए प्रतिबंधित करने की शक्ति है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 34 के अनुसार संसद किसी क्षेत्र में मार्शल लॉ के तहत जारी दंड आदेशों को वैध बना सकती है।

अनुच्छेद- 35 इस भाग के उपबंधो को प्रभावी करने के लिए विधि बनाने का अधिकार केवल संसद को है।


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