उत्सर्जन तंत्र || Excretory System || Important Facts
उत्सर्जन तंत्र
Excretory system
शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड, जल, अमोनिया, यूरिक अम्ल, यूरिया आदि अपशिष्ट पदार्थ बनते हैं जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते है। इन सब पदार्थों को उत्सर्जी पदार्थ तथा इनको शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। उत्सर्जन की मुख्य प्रक्रिया नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालना है जो मुख्यतः प्रोटीन, विटामिन, न्यूक्लिक अम्ल के विघटन से बनता है। उत्सर्जन मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. अमोनोटीलिक उत्सर्जन (Ammonotelic Excretion):
जलीय जंतुओं में उत्सर्जी पदार्थ मुख्यतः अमोनिया होता है, जिनके उत्सर्जन को अमोनोटलिक उत्सर्जन कहते हैं। 1 ग्राम अमोनिया के उत्सर्जन के लिए 500ml जल की आवश्यकता होती है। अमोनिया अधिक विषैली तथा जल में घुलनशील होती है। प्रोटोजोआ, पोरिफेरा, नाइडेरिया, पॉलिकीटा, मोलस्का, जलीय आर्थ्रोपोडा अस्थीय एवं अलवणजलीय मछलियां, अमीरों के टेडपोलो आदि में अमोनोटलिक उत्सर्जन होता है। सीपी, घोंघा कुछ एकानोडर्मेटा उत्सर्जित पदार्थ अमीनो अम्ल के रूप में होता है इसे अमीनोटिलिक उत्सर्जन कहते हैं।
2. यूरियोटलिक उत्सर्जन (Ureotelic Excretion):
ऐसे स्थलीय जंतु जो जल का अधिक व्यय नहीं कर सकते वे अमोनिया से यूरिया बनाकर इसका उत्सर्जन करते हैं। ऐसे उत्सर्जन को यूरियोटीलिक उत्सर्जन कहते हैं। 1 ग्राम यूरिया के लिए लगभग 50ml जल की आवश्यकता होती है। उदाहरण- मेंढक, स्तनधारी, केंचुआ आदि।
3. यूरिकोटीलिक उत्सर्जन (Ureotelic Excretion):
शुष्क वातावरण में रहने वाले जंतुओं का उत्सर्जन मुख्यत: यूरिक अम्ल के रूप में होता है। यह रवों के रूप में या अर्ध ठोस के रूप में होता है। इसे यूरियोटीलिक उत्सर्जन या यूरिकोटोलिज्म कहते हैं। 1 ग्राम यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के लिए लगभग 10ml जल की आवश्यकता होती है। उदाहरण- कीट, सरीसृप, पक्षी आदि।
मकड़ी या अपने नाइट्रोजन के पदार्थों का ग्वानीन के रूप में उत्सर्जन करती हैं। शशांक तथा अन्य स्तनधारियों और पक्षियों के आहार में सूक्ष्म मात्रा में बेंजोइक अम्ल हो सकता हैं। उत्सर्जन के लिए स्तनियो में इसेेेे ग्लाइसिन नामक अमीनो अम्ल से मिलाकर हिप्यूूूरिक अम्ल में और पक्षियों में आर्निथिन नामक अमीनो अम्ल से मिलाकर और आर्निथ्यूरिक अम्ल में बदला जाता है। क्रीटीन फास्फेट मुख्यतः उच्च ऊर्जा या क्रिएटिनिन में बदलकर उत्सर्जन कर दिया जाता है। कशेरुकियो में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क (Kidney) होता है, एक जोड़ी वृक्क कशेरुकदंड केेे इधर-उधर स्थित होते हैं।
वृक्क गहरे लाल रंग के तथा सेम के बीज के आकृति के होते हैं। इसकी लंबाई 10 -12.5 सेमी. , चौड़ाई 5 - 7.5 सेमी. तथा मोटाई 2 - 2.5 सेमी. होती है। इसका वजन हमारे शरीर का लगभग 0.5% होता है। हमारे शरीर तथा अधिकतम स्तनधारियों में बाया वृक्क दाहिने वृृक्क की अपेक्षा कुछ ऊपर होता है। नेफ्रॉन वृृक्क की क्रियात्मक और संरचनात्मक इकाई है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 लाख नलिकाओं से मिलकर बना होता है।
उत्सर्जन की मुख्यतः दो प्रक्रिया होती हैं-
• यूरिया का बनना
• मूत्र का बनना
यूरिया का निर्माण यकृत में तथा मूत्र का निर्माण वृक्क में होता है। वृक्क नलिका में रुधिर को छानने तथा मूत्र सृजन की वास्तविक क्रिया विधि में निम्न तीन भौतिक प्रक्रिया होती हैं-
1. परानिस्पंदन (Ultrafiltration)
2. चयनात्मक पुनरावशोषण (Selective Reabsorption)
3. स्रावण (secretion)
जलीय जंतुओं में उत्सर्जी पदार्थ मुख्यतः अमोनिया होता है, जिनके उत्सर्जन को अमोनोटलिक उत्सर्जन कहते हैं। 1 ग्राम अमोनिया के उत्सर्जन के लिए 500ml जल की आवश्यकता होती है। अमोनिया अधिक विषैली तथा जल में घुलनशील होती है। प्रोटोजोआ, पोरिफेरा, नाइडेरिया, पॉलिकीटा, मोलस्का, जलीय आर्थ्रोपोडा अस्थीय एवं अलवणजलीय मछलियां, अमीरों के टेडपोलो आदि में अमोनोटलिक उत्सर्जन होता है। सीपी, घोंघा कुछ एकानोडर्मेटा उत्सर्जित पदार्थ अमीनो अम्ल के रूप में होता है इसे अमीनोटिलिक उत्सर्जन कहते हैं।
2. यूरियोटलिक उत्सर्जन (Ureotelic Excretion):
ऐसे स्थलीय जंतु जो जल का अधिक व्यय नहीं कर सकते वे अमोनिया से यूरिया बनाकर इसका उत्सर्जन करते हैं। ऐसे उत्सर्जन को यूरियोटीलिक उत्सर्जन कहते हैं। 1 ग्राम यूरिया के लिए लगभग 50ml जल की आवश्यकता होती है। उदाहरण- मेंढक, स्तनधारी, केंचुआ आदि।
3. यूरिकोटीलिक उत्सर्जन (Ureotelic Excretion):
शुष्क वातावरण में रहने वाले जंतुओं का उत्सर्जन मुख्यत: यूरिक अम्ल के रूप में होता है। यह रवों के रूप में या अर्ध ठोस के रूप में होता है। इसे यूरियोटीलिक उत्सर्जन या यूरिकोटोलिज्म कहते हैं। 1 ग्राम यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के लिए लगभग 10ml जल की आवश्यकता होती है। उदाहरण- कीट, सरीसृप, पक्षी आदि।
मकड़ी या अपने नाइट्रोजन के पदार्थों का ग्वानीन के रूप में उत्सर्जन करती हैं। शशांक तथा अन्य स्तनधारियों और पक्षियों के आहार में सूक्ष्म मात्रा में बेंजोइक अम्ल हो सकता हैं। उत्सर्जन के लिए स्तनियो में इसेेेे ग्लाइसिन नामक अमीनो अम्ल से मिलाकर हिप्यूूूरिक अम्ल में और पक्षियों में आर्निथिन नामक अमीनो अम्ल से मिलाकर और आर्निथ्यूरिक अम्ल में बदला जाता है। क्रीटीन फास्फेट मुख्यतः उच्च ऊर्जा या क्रिएटिनिन में बदलकर उत्सर्जन कर दिया जाता है। कशेरुकियो में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क (Kidney) होता है, एक जोड़ी वृक्क कशेरुकदंड केेे इधर-उधर स्थित होते हैं।
वृक्क गहरे लाल रंग के तथा सेम के बीज के आकृति के होते हैं। इसकी लंबाई 10 -12.5 सेमी. , चौड़ाई 5 - 7.5 सेमी. तथा मोटाई 2 - 2.5 सेमी. होती है। इसका वजन हमारे शरीर का लगभग 0.5% होता है। हमारे शरीर तथा अधिकतम स्तनधारियों में बाया वृक्क दाहिने वृृक्क की अपेक्षा कुछ ऊपर होता है। नेफ्रॉन वृृक्क की क्रियात्मक और संरचनात्मक इकाई है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 लाख नलिकाओं से मिलकर बना होता है।
उत्सर्जन की मुख्यतः दो प्रक्रिया होती हैं-
• यूरिया का बनना
• मूत्र का बनना
यूरिया का निर्माण यकृत में तथा मूत्र का निर्माण वृक्क में होता है। वृक्क नलिका में रुधिर को छानने तथा मूत्र सृजन की वास्तविक क्रिया विधि में निम्न तीन भौतिक प्रक्रिया होती हैं-
1. परानिस्पंदन (Ultrafiltration)
2. चयनात्मक पुनरावशोषण (Selective Reabsorption)
3. स्रावण (secretion)
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