भारत में पंचायती राजव्यवस्था का इतिहास || पंचायती राज व्यवस्था || स्थानीय स्वशासन || panchayati Raj vyavastha || sthaniya swashasan
पंचायती राजव्यवस्था
• भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही हैं। स्वतंत्र भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत 2 अक्टूबर सन 1959 से हुई।
• ब्रिटिश काल में सन 1882 में लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन को स्थापित करने का प्रयास किया था।
• स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की स्थिति की जांच के लिए सन 1882 एवं 1907 में आयोगों की नियुक्ति की गई। इन आयोगों ने स्थानीय स्वशासन पर बल दिया।
स्वतंत्रता के बाद पंचायत राज व्यवस्था तथा स्थानीय स्वशासन का विकास:
• भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्ट 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके राज्यों को इस पर कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व से संबंधित अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। सर्वप्रथम 1952 में नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।
बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें
• सन 1957 में पंचायती राज्य के विकास से संबंधित सुझाव देने हेतु एक समिति गठित की गई जिसका अध्यक्ष श्री बलवंत राय मेहता को बनाया गया।
• इस समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु पंचायती राज संस्थाओं की तुरंत शुरुआत की जानी चाहिए।
• बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायत संस्थाओं को त्रिस्तरीय बनाने की सिफारिश की।
पंचायत के तीन स्तर:
(1) ग्राम या नगर पंचायत
(2) तहसील पंचायत
(3) जिला पंचायत
• समिति ने गांव समूह के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचित पंचायतों खंड स्तर पर निर्वाचित प्रथम नामित सदस्यों वाली एवं जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन करने का सुझाव दिया गया। मेहता समिति की सिफारिशों को 1 अप्रैल 1958 को लागू किया गया।
• बलवंत राय मेहता की रिपोर्ट के आधार पर 2 अक्टूबर सन 1959 ई. को सर्वप्रथम राजस्थान राज्य के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा किया गया।
• 11 अक्टूबर सन 1959 ई. को आंध्र प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया।
पंचायती राज पर अशोक मेहता समिति:
• 12 सितंबर 1977 को भारत सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की इस समिति के गठन का उद्देश्य बलवंत राय मेहता समिति के सुझाव के दोषों को दूर करना था इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए -
• पंचायती राज के ढांचे को द्बिस्तरीय जाए।
• जिला परिषद तथा मंडल पंचायत की स्थापना की जाए, ग्राम पंचायत की जगह मंडल पंचायत का सुझाव दिया था। मंडल पंचायत का गठन कई गांव को मिलाकर के जाने, मंडल पंचायत तथा जिला परिषद का कार्यकाल 4 वर्ष निर्धारित किया जाए।
• जिला कलेक्टर सहित जिला स्तर के सभी अधिकारी अंततः जिला परिषद के अधीन रखा जाए।
• विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित किए जाएं बाद में इस समिति की सिफारिशों को सरकार ने नामंजूर कर दिया।
• डॉ. एल. एम. सिंघवी समिति ने यह सिफारिश दी कि ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए उनका पुनर्गठन किया जाए तथा ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय साधन उपलब्ध कराया जाए।
• वर्ष 1989 में 64 वा संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया परंतु यह विधेयक राज्यसभा द्वारा नामंजूर कर दिया गया।
73 वा संविधान संशोधन अधिनियम:
• दिसंबर 1992 में 73 वा संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ तथा 25 अप्रैल 1993 को इसे क्रियान्वित किया गया। इस संशोधन विधेयक के अनुसार पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग 9 में शामिल किए गए हैं। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 243(ख) त्रिस्तरीय पंचायती राज का प्रावधान करता है।
• पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। ग्राम सभा द्वारा ग्रामीण स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग किया जाएगा और ऐसे कार्यों को किया जाएगा जो राज्य विधान मंडल द्वारा विधि बनाकर निर्धारित किए गए हो।
• पंचायतों को सौपे गए कार्यों को 11वीं अनुसूची में 29 विषयों को सम्मिलित किया गया है।
• राज्यपाल द्वारा 73वें संविधान संशोधन के प्रारंभ से 1 वर्ष के भीतर और उसके बाद 5 वर्ष की समाप्ति पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्निरीक्षण करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
• प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर पर, मध्यवर्ती स्तर पर तथा जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं का गठन किया जाएगा।
• जिस राज्य में जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है वहां पर मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जाएगा। पंचायतों के सभी स्थान प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरे जाएंगे।
• प्रत्येक पंचायत में क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था चक्रानुक्रम द्वारा दी जाएगी।
• प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गए स्थानों के कुल संख्या के 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।
74वां संविधान संशोधन नगरीय शासन:
• भारत में नगरीय शासन को कानूनी रूप दिया गया। इसके तहत ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापना की गई।
• सन 1793 का चार्टर द्वारा मद्रास, बंगाल तथा मुंबई महानगरों के लिए नगर निगमों की स्थापना की गई।
• सन 1909 में शाही विकेंद्रीकरण आयोग का गठन किया गया। जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर 1919 के अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान सम्मिलित किया गया।
• संविधान के 74 वें संशोधन द्वारा नगरीय शासन के संबंधों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
• इस संशोधन द्वारा संविधान में भाग 9 (क) तथा 18 विषय शामिल किए गए।
• कार्यों के लिए प्रावधान संविधान में एक अतिरिक्त 12वीं अनुसूची को जोड़ा गया।
• प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद तथा नगर निगम का गठन किया गया।
• तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाले नगरपालिका के क्षेत्र में एक या अधिक वार्ड समितियों का गठन किया जाएगा।
• भारत में नगरीय शासन को कानूनी रूप दिया गया। इसके तहत ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापना की गई।
• सन 1793 का चार्टर द्वारा मद्रास, बंगाल तथा मुंबई महानगरों के लिए नगर निगमों की स्थापना की गई।
• सन 1909 में शाही विकेंद्रीकरण आयोग का गठन किया गया। जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर 1919 के अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान सम्मिलित किया गया।
• संविधान के 74 वें संशोधन द्वारा नगरीय शासन के संबंधों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
• इस संशोधन द्वारा संविधान में भाग 9 (क) तथा 18 विषय शामिल किए गए।
• कार्यों के लिए प्रावधान संविधान में एक अतिरिक्त 12वीं अनुसूची को जोड़ा गया।
• प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद तथा नगर निगम का गठन किया गया।
• तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाले नगरपालिका के क्षेत्र में एक या अधिक वार्ड समितियों का गठन किया जाएगा।
• प्रत्येक सरकार के नगर निकायों के स्थानों के लिए अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थानों को आरक्षित किया जाएगा।
• 30% स्थानों का आरक्षण महिलाओं के लिए होगा।
• नगरीय निकायों की अवधि 5 वर्ष होगी परंतु इन्हें 5 वर्ष से पहले भी विघटित किया जा सकता है।
• नगरीय संस्थाओं के उत्तरदायित्व तथा शक्तियों का निर्धारण राज्य विधानमंडल कानून बनाकर निश्चित करेगा।
• मैं सारे अतिरिक्त विषय संविधान की 12वीं अनुसूची में शामिल किए गए हैं जिस के संबंध में राज्य कानून बनाकर नगरी संस्थाओं को सौंपेगा।
नगरों में स्थानीय स्वशासन:
• 1687 ई. में मद्रास में नगर निगम की स्थापना के साथ भारत में नगरीय स्वशासन की नींव पड़ी।
• 1799 के चार्टर द्वारा मुंबई, कोलकाता एवं मद्रास में नगरीय प्रशासन की स्थापना हुई।
• वास्तव में रिपन ने 1882 में स्थानीय स्वशासन के नींव डाली। उसे भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है।
• 74 वें संशोधन द्वारा नगरीय इकाइयों को संविधान के भाग 9(क) में तथा अनुच्छेद 243 में स्थान दिया गया। उनके लिए 18 विषयों वाली 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
• उन्हें अविनाशी इकाइयों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया गया। अनुच्छेद 243(त) से अनुच्छेद 243 य (छ) तक के उपबंध नगरीय इकाइयों को समर्पित हैं।
• नगर पालिका में महिलाओं के लिए 1/3 भाग स्थान आरक्षित है।
• नगर पालिका में अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
• नगरीय संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। विघटन की स्थिति में 6 माह के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य है।
• नगरीय निकायों की अवधि 5 वर्ष होगी परंतु इन्हें 5 वर्ष से पहले भी विघटित किया जा सकता है।
• नगरीय संस्थाओं के उत्तरदायित्व तथा शक्तियों का निर्धारण राज्य विधानमंडल कानून बनाकर निश्चित करेगा।
• मैं सारे अतिरिक्त विषय संविधान की 12वीं अनुसूची में शामिल किए गए हैं जिस के संबंध में राज्य कानून बनाकर नगरी संस्थाओं को सौंपेगा।
नगरों में स्थानीय स्वशासन:
• 1687 ई. में मद्रास में नगर निगम की स्थापना के साथ भारत में नगरीय स्वशासन की नींव पड़ी।
• 1799 के चार्टर द्वारा मुंबई, कोलकाता एवं मद्रास में नगरीय प्रशासन की स्थापना हुई।
• वास्तव में रिपन ने 1882 में स्थानीय स्वशासन के नींव डाली। उसे भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है।
• 74 वें संशोधन द्वारा नगरीय इकाइयों को संविधान के भाग 9(क) में तथा अनुच्छेद 243 में स्थान दिया गया। उनके लिए 18 विषयों वाली 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
• उन्हें अविनाशी इकाइयों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया गया। अनुच्छेद 243(त) से अनुच्छेद 243 य (छ) तक के उपबंध नगरीय इकाइयों को समर्पित हैं।
• नगर पालिका में महिलाओं के लिए 1/3 भाग स्थान आरक्षित है।
• नगर पालिका में अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
• नगरीय संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। विघटन की स्थिति में 6 माह के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य है।
Thanku sir
जवाब देंहटाएंThnx sir
जवाब देंहटाएंThanku so much sir
जवाब देंहटाएंNic...🤗
जवाब देंहटाएंthankyou sir
जवाब देंहटाएंNice sir ji
जवाब देंहटाएंBhadiya sir gee
जवाब देंहटाएंvery good...sir...🧒🧒
जवाब देंहटाएंHii...sir..Me shubham dhiman...🤗🤗🤗
जवाब देंहटाएंhello sir...🧒
जवाब देंहटाएंnic topic...sir...🤗
जवाब देंहटाएंGjjjb
जवाब देंहटाएंNice sir
जवाब देंहटाएंVery nice sir
जवाब देंहटाएंNic post
जवाब देंहटाएंThanks Guru G
जवाब देंहटाएंThanks Guru G
जवाब देंहटाएंGautam Bajaj