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विधानसभा | Legislative Assembly | Art 170 | मुख्यमंत्री | Chief Minister


Legislative Assembly
विधानसभा

• अनुच्छेद 170 के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधानसभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए अधिक से अधिक 500 और कम से कम 60 सदस्यों से मिलकर बनेगी।

• वर्तमान में सबसे छोटी विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की (30) है। राज्यों में सिक्किम राज्य की (32) है। सबसे बड़ी विधानसभा उत्तर प्रदेश की (403) है।

• 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के अनुसार राज्य विधानसभाओं की संख्या वर्ष 2026 तक यही रहेगी।



• विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है किंतु विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह इससे पहले भी उसको विघटित कर सकता है।

• विधानसभा के सत्रावसान के आदेश राज्यपाल के द्वारा दिए जाते हैं। विधानसभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है।

• विधानसभा में जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जाता है (Art 332)

• विधान सभा की अध्यक्षता करने के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव करने का अधिकार सदन को प्राप्त है, जो इसकी बैठकों का संचालन करता है।

• साधारणतया विधानसभा अध्यक्ष सदन में मतदान नहीं करता किंतु यदि सदन में मत बराबरी में बंट जाएं तो वह निर्णायक मत देता है।

• जब कभी अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो उस समय वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता नहीं करता है।

• किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाए अथवा नहीं इसका निर्णय विधानसभा अध्यक्ष ही करता है।

• सदन में बैठकों के लिए सदन के कुछ सदस्यों के दसवां भाग ( 1/10 ) सदस्यों की उपस्थिति या गणपूर्ति के लिए आवश्यक हैं।

विधानसभा के अधिकार और कार्य
1. विधि निर्माण: 
इसे राज्य सूची से संबंधित विषयों पर विधि निर्माण का अनन्य अधिकार प्राप्त है।
• समवर्ती सूची से संबंध विषय पर संसद की तरह राज्य विधानमंडल भी विधि निर्माण कर सकता है किंतु यदि दोनों द्वारा निर्मित विधियों में परस्पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो तो संसदीय विधि निर्माण करेगी।

2. वित्तीय विषयों से संबंधित प्रक्रिया:
 राज्य विधानमंडल राज्य सरकार की वित्तीतीय अवस्था को पूर्णतया नियंत्रित करता है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में विधानमंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण अथवा बजट प्रस्तुत किया जाता है।

• कोई धन विधेयक प्रारंभ में विधान परिषद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। जब विधानसभा किसी धन विधेयक को पारित कर देती है तब वह विधान परिषद के पास भेज दिया जाता है।

• विधान परिषद को 14 दिनों के भीतर विधानसभा को लौटाना पड़ता है। विधान परिषद उस विधेयक के संबंध में संस्तुति तो दे सकती है किंतु वह न तो उसे अस्वीकार कर सकती और न उसमें संशोधन कर सकती।

• विधानसभा द्वारा पारित किए जाने के 14 दिनों के बाद विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित समझ लिया जाता है तथा राज्यपाल को उस पर अपनी सहमति देनी पड़ती है।

3. कार्यपालिका पर नियंत्रण:
मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। जब कभी मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो संपूर्ण मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।

4. संवैधानिक संशोधन: 
संघीय स्वरूप को प्रभावित करने वाला कोई संविधान संशोधन विधेयक यदि संसद के दोनों सदनों के द्वारा पारित हो जाता है, तो आधे से अधिक राज्यों के विधान मंडलों द्वारा उसकी पुष्टि आवश्यक है।

5.निर्वाचन संबंधी अधिकार:
राष्ट्रपति के निर्वाचन में जितना मताधिकार संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को प्राप्त है, उतना ही राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को प्राप्त है।



मुख्यमंत्री (Chief Minister)
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। साधारणतः वैसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है जो विधानसभा में बहुमत दल का नेता होता है।
• राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं पुदुचेरी की चुनाव पश्चात मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है और मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है।




• मुख्यमंत्री ही शासन का प्रमुख प्रवक्ता है और मंत्रीपरिषदों की बैठकों की अध्यक्षता करता है। मंत्रिपरिषद के निर्णय को मुख्यमंत्री ही राज्यपाल तक पहुंचाता है।

• जब कभी राज्यपाल कोई बात मंत्रिपरिषद तक पहुंचाना चाहता है, तो वह मुख्यमंत्री के द्वारा ही यह कार्य करता है।

• राज्यपाल के सारे अधिकारों का प्रयोग मुख्यमंत्री ही करता है।



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